सूर्यकान्त त्रिपाठी ' निराला ' का हिन्दी साहित्य में एक महत्वपूर्ण तथा विशेष स्थान है। निराला जी ने हिन्दी की गद्य तथा पद्य दोनों विधाओं में अनेक रचनाएँ लिखीं। निराला जी की काव्यकला का उत्कृष्ट स्वरूप " परिमल " काव्य - संग्रह में मिलता है। प्रस्तुत कविता ' भिक्षुक ' उसी से ली गयी है। समाज के पीड़ितों, दुःखी, दीन - दलितों के प्रति उनका हृदय विशेष संवेदनशील था। उसकी झलक इस कविता में स्पष्टत: दिखायी पड़ती है।
वह आता
दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता।
पेट - पीठ दोनों मिलकर हैं एक
चल रहा लकुटिया टेक
मुट्ठी भर दाने को भूख मिटाने को
मुँह फटी पुरानी झोली का फैलता
दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता।
साथ दो बच्चे भी हैं सदा हाथ फैलाये
बायें से वे मलते हुए पेट को चलते
और दाहिना दया - दृष्टि पाने की ओर बढ़ाये।
भूख से सूख ओठ जब जाते
दाता - भाग्यविधाता से क्या पाते।
घूँट आँसुओं के पीकर रह जाते।
कविवर सूर्यकान्त त्रिपाठी ' निराला '
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सूर्यकान्त त्रिपाठी ' निराला ' |
( सूर्यकान्त त्रिपाठी ' निराला ' का हिन्दी साहित्य में एक महत्वपूर्ण तथा विशेष स्थान है। निराला जी ने हिन्दी की गद्य तथा पद्य दोनों विधाओं में अनेक रचनाएँ लिखीं। निराला जी की काव्यकला का उत्कृष्ट स्वरूप " परिमल " काव्य - संग्रह में मिलता है। प्रस्तुत कविता ' भिक्षुक ' उसी से ली गयी है। समाज के पीड़ितों, दुःखी, दीन - दलितों के प्रति उनका हृदय विशेष संवेदनशील था। उसकी झलक इस कविता में स्पष्टत: दिखायी पड़ती है। )
आपकी इस पोस्ट को ब्लॉग बुलेटिन की आज कि ब्लॉग बुलेटिन - मेहदी हसन जी की दूसरी पुण्यतिथि में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद।
जवाब देंहटाएंवाह !!
जवाब देंहटाएंआभार आपका !!
बेहद उम्दा रचना और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंनयी पोस्ट@जब भी सोचूँ अच्छा सोचूँ