बढ़ अकेला यदि कोई संग तेरे पंथ वेला बढ़ अकेला चरण ये तेरे रुके ही यदि रहेंगे देखने वाले तुझे, कह, क्या कहेंगे हो न कुंठित, हो न स्तंभित यह मधुर अभियान वेला बढ़ अकेला श्वास ये संगी तरंगी क्षण प्रति क्षण और प्रति पदचिन्ह परिचित पंथ के कण शून्य का श्रृंगार तू उपहार तू किस काम वेला बढ़ अकेला
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कवि त्रिलोचन शास्त्री |
यदि कोई संग तेरे पंथ वेला
बढ़ अकेला
चरण ये तेरे रुके ही यदि रहेंगे
देखने वाले तुझे, कह, क्या कहेंगे हो न कुंठित, हो न स्तंभित
यह मधुर अभियान वेला
बढ़ अकेला
श्वास ये संगी तरंगी क्षण प्रति क्षण
और प्रति पदचिन्ह परिचित पंथ के कण शून्य का श्रृंगार तू
उपहार तू किस काम वेला
बढ़ अकेला
विश्व जीवन मूक दिन का प्राणायाम स्वर
सान्द्र पर्वत - श्रृंग पर अभिराम निर्झर सकल जीवन जो जगत के
खेल भर उल्लास खेला
बढ़ अकेला
कवि त्रिलोचन शास्त्री
( "बढ़ अकेला" शीर्षक में कवि ने व्यक्ति को निरन्तर प्रगति पथ पर बढ़ने की प्रेरणा दी है।)
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