सदियों की ठंडी-बुझी राख सुगबुगा उठी, मिटटी सोने का ताज पहन इठलाती है, दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो, सिंहासन खाली करो कि जनता आती है। जनता? हां, मिट्टी की अबोध मूरतें वही, जाड़े-पाले की कसक सदा सहने वाली, जब अंग-अंग में लगे सांप हो चूस रहे तब भी न कभी मुंह खोल दर्द कहने वाली। लेकिन होता भूडोल, बवंडर उठते हैं, जनता जब कोपाकुल हो भृकुटि चढ़ाती है, दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो, सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
सदियों की ठंडी-बुझी राख सुगबुगा उठी,
मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है,
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
जनता? हां, मिट्टी की अबोध मूरतें वही,
जाड़े-पाले की कसक सदा सहने वाली,
जब अंग-अंग में लगे सांप हो चूस रहे
तब भी न कभी मुंह खोल दर्द कहने वाली।
लेकिन होता भूडोल, बवंडर उठते हैं,
जनता जब कोपाकुल हो भृकुटि चढ़ाती है,
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
हुंकारों से महलों की नींव उखड़ जाती,
सांसों के बल से ताज हवा में उड़ता है,
जनता की रोके राह, समय में ताव कहाँ?
वह जिधर चाहती, काल उधर ही मुड़ता है।
मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है,
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
जनता? हां, मिट्टी की अबोध मूरतें वही,
जाड़े-पाले की कसक सदा सहने वाली,
जब अंग-अंग में लगे सांप हो चूस रहे
तब भी न कभी मुंह खोल दर्द कहने वाली।
लेकिन होता भूडोल, बवंडर उठते हैं,
जनता जब कोपाकुल हो भृकुटि चढ़ाती है,
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
हुंकारों से महलों की नींव उखड़ जाती,
सांसों के बल से ताज हवा में उड़ता है,
जनता की रोके राह, समय में ताव कहाँ?
वह जिधर चाहती, काल उधर ही मुड़ता है।
रामधारी सिंह 'दिनकर'
(राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' का जन्म 23 सितम्बर, 1908 ई. में बिहार राज्य के मुँगेर जिले के सिमरिया नामक गाँव में हुआ था। "रेणुका", "हुंकार", "रसवन्ती", "सामधेनी", "कुरुक्षेत्र", "रश्मिरथी", "उर्वशी", "परशुराम की प्रतिज्ञा" आदि इनके काव्य संग्रह है। "अर्द्धनारीश्वर", "वट-पीपल", "उजली आग", "संस्कृति के चार अध्याय" (निबन्ध) , "मिट्टी की ओर", "काव्य की भूमिका", "देश-विदेश" (यात्रा) आदि इनकी गद्य रचनाएँ है। सन् 1959 ई. में भारत सरकार ने इन्हें "पद्मभूषण" की उपाधि से सम्मानित किया तथा सन् 1962 ई. में भागलपुर विश्वविद्यालय ने इन्हें डी. लिट्. की मानद उपाधि से सम्मानित किया। दिनकर जी को इनके सुप्रसिद्ध काव्य संग्रह "उर्वशी" के लिए सन् 1972 ई. में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। दिनकर जी की असामयिक मृत्यु 24अप्रैल, सन् 1974 ई. में हुई थी।)
COMMENTS