इस जीवन में रह न जाए मल द्वेष, दंभ, अन्याय, घृणा, छल चरण चरण चल गृह कर उज्जवल गृह गृह की लक्ष्मी मुसकाओ आज मुक्त कर मन के बंधन करो ज्योति का जय का वंदन स्नेह अतुल धन, धन्य यह भुवन बन कर स्नेह गीत लहराओ कर्मयोग कल तक के भूलो जीवन-सुमन सुरभि पर फूलो छवि छवि छू लो, सुख से झूलो जीवन की नव छवि बरसाओ ये अनंत के लघु लघु तारे दुर्बल अपनी ज्योति पसारे अंधकार से कभी न हारे प्रतिमन वही लगन सरसाओ। - त्रिलोचन
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त्रिलोचन |
द्वेष, दंभ, अन्याय, घृणा, छल
चरण चरण चल गृह कर उज्जवल
गृह गृह की लक्ष्मी मुसकाओ
आज मुक्त कर मन के बंधन
करो ज्योति का जय का वंदन
स्नेह अतुल धन, धन्य यह भुवन
बन कर स्नेह गीत लहराओ
कर्मयोग कल तक के भूलो
जीवन-सुमन सुरभि पर फूलो
छवि छवि छू लो, सुख से झूलो
जीवन की नव छवि बरसाओ
ये अनंत के लघु लघु तारे
दुर्बल अपनी ज्योति पसारे
अंधकार से कभी न हारे
प्रतिमन वही लगन सरसाओ।
- त्रिलोचन
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