जब नहीं था इन्सान धरती पर थे जंगल जंगली जानवर, परिंदे इन्हीं सबके बीच उतरा इन्सान और घटने लगे जंगल जंगली जानवर, परिंदे इन्सान बढ़ने लगा बेतहाशा अब कहाँ जाते जंगल, जंगली जानवर, परिंदे प्रकृति किसी के साथ नहीं करती नाइन्साफ़ी सभी के लिए बनाती है जगह सो अब इन्सानों के भीतर उतरने लगे हैं जंगल, जंगली जानवर और परिंदे प्रस्तुति - हूबनाथ साभार - नवनीत - हिन्दी डाइजेस्ट जून, 2014
जब नहीं था
इन्सान
धरती पर थे जंगल
जंगली जानवर, परिंदे
इन्हीं सबके बीच उतरा
इन्सान
और घटने लगे जंगल
जंगली जानवर, परिंदे
इन्सान
बढ़ने लगा बेतहाशा
अब कहाँ जाते जंगल,
जंगली जानवर, परिंदे
प्रकृति किसी के साथ
नहीं करती नाइन्साफ़ी
सभी के लिए बनाती है जगह
सो अब
इन्सानों के भीतर उतरने लगे हैं
जंगल, जंगली जानवर
और परिंदे
इन्सान
धरती पर थे जंगल
जंगली जानवर, परिंदे
इन्हीं सबके बीच उतरा
इन्सान
और घटने लगे जंगल
जंगली जानवर, परिंदे
इन्सान
बढ़ने लगा बेतहाशा
अब कहाँ जाते जंगल,
जंगली जानवर, परिंदे
प्रकृति किसी के साथ
नहीं करती नाइन्साफ़ी
सभी के लिए बनाती है जगह
सो अब
इन्सानों के भीतर उतरने लगे हैं
जंगल, जंगली जानवर
और परिंदे
प्रस्तुति - हूबनाथ
साभार - नवनीत - हिन्दी डाइजेस्ट (जून 2014)
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : आदि ग्रंथों की ओर - दो शापों की टकराहट
इन्सानों के भीतर उतरने लगे हैं
जवाब देंहटाएंजंगल, जंगली जानवर
और परिंदे ...
...इंसान अपनी फितरत से बाज नहीं आता ....इंसान बने रहना आजकल बहुत मुश्किल होता जा रहा है ..
...बहुत सुन्दर सार्थक चिंतनयुक्त रचना