अनुच्छेद 370 पर पेच - हेमेन्द्र मिश्र Anuchhed 370 par pech - Hemendra Mishra
अनुच्छेद 370 का स्वरूप
अनुच्छेद 370 का वर्णन हमारे संविधान में है। यह एक अस्थायी प्रबंध है, जिसके जरिये जम्मू और कश्मीर को विशेष स्वायत्तता वाले राज्य का दर्जा दिया गया है। इससे संबंधित प्रावधानों की चर्चा संविधान के भाग 21 में है, जो अस्थायी, परिवर्ती और विशेष प्रबंध वाले राज्यों से संबंधित है। इस अनुच्छेद की वजह से ही जम्मू-कश्मीर में वे कानून भी लागू नहीं किए जा सकते, जो देश के अन्य राज्यों में लागू हो रहे हैं। प्रावधानों के अनुसार, संसद को जम्मू-कश्मीर के बारे में रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का अधिकार है, लेकिन किसी अन्य विषय से संबंधित कानून लागू कराने के लिए केंद्र को राज्य सरकार का अनुमोदन लेना जरूरी है। अनुच्छेद 370 की वजह से जम्मू-कश्मीर पर अनुच्छेद 360 के तहत केंद्र सरकार आर्थिक आपातकाल नहीं लगा सकती। युद्ध और बाहरी आक्रमण की स्थिति में ही यहां केंद्र द्वारा आपातकाल लगाया जा सकता है। अगर राज्य में आंतरिक गड़बड़ी की शिकायत भी केंद्र को मिलती है, तो उसे यहां आपातकाल लगाने से पहले राज्य सरकार की मंजूरी लेनी होगी।
ऐसी पड़ी नींव
ब्रिटिश हुकूमत की समाप्ति के साथ ही जम्मू और कश्मीर भी आजाद हुआ। शुरू में इसके शासक महाराज हरिसिंह ने फैसला लिया कि वह भारत या पाकिस्तान में सम्मिलित न होकर स्वतंत्र होंगे, लेकिन 20 अक्तूबर, 1947 को पाकिस्तान समर्थक आजाद कश्मीर सेना ने राज्य पर आक्रमण कर दिया, जिस वजह से महाराज हरिसिंह ने राज्य की भारत में मिलाने का फैसला लिया। उस विलय-पत्र के अनुसार, राज्य केवल तीन विषयों ( रक्षा, विदेशी मामले और संचार ) पर अपना अधिकार नहीं रखेगा, बाकी सभी पर उसका नियंत्रण होगा। उस समय भारत सरकार ने आश्वासन दिया कि इस राज्य के लोग अपने स्वयं के संविधान द्वारा राज्य पर भारतीय संघ के अधिकार क्षेत्र को निर्धारित करेंगे। जब तक राज्य विधानसभा द्वारा भारत सरकार के फैसले पर मुहर नहीं लगाया जाएगा, तब तक भारत का संविधान राज्य के संबंध में केवल अंतरिम व्यवस्था कर सकता है। इसी क्रम में भारतीय संविधान में अनुच्छेद 370 जोड़ा गया, जिसमें बताया गया कि जम्मू-कश्मीर से संबंधित राज्य उपबंध केवल अस्थायी है, स्थायी नहीं।
बदलाव भी हुए हैं
अनुच्छेद 370 को लेकर भले ही विरोध होता रहा हो, लेकिन इस अनुच्छेद में समय के साथ-साथ कई बदलाव भी किए गए हैं। 1965 तक जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल और मुख्यमंत्री नहीं होता था। उनकी जगह सदर-ए-रियासत और प्रधानमंत्री के पद होते थे। लेकिन बाद में इसे बदल दिया गया। इसी तरह पहले जम्मू-कश्मीर में कोई भारतीय नागरिक जाता था, तो उसे अपने साथ पहचान-पत्र रखना जरूरी था। लेकिन यह प्रावधान भी विरोध के बाद हटा लिया गया।
- हेमेन्द्र मिश्र
साभार - अमर उजाला, उड़ान | पेज नं. - 15 | 18 जून, 2014
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